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कविता

बखान

हरेराम द्विवेदी


अपने अपन करीं केतनी बखान हो
सासु मोरी धरती ससुरु असमान हो
लहुरा देवरवा मोरी अँखिया कै पुतरी
सासु जी अँचरा कै कोनवाँ परान हो
जेठउत हमरे ससुरु कै दुलरुआ
गंगा अस निरमल हमरी जेठान हो
ननदी हमारा पुनवाँसी कै अजोरिया
सइयाँ मोर उगैं जइसे सूरुज बिहान हो
नइहर मोर जइसे जलभर बदरा
मोरे ससुरे वइसैं लहरै सिवान हो 


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